Dhanuka Sati Mandir

Dhanuka Sati Mandir

धानुका कुल की एक सती फतेहपुर शहर में शमसानियां क्षेत्र में हुई जो शेखावाटी राजस्थान में सावा सती के नाम से प्रसिद्ध है। मूलस्थान फतेहपुर शेखावाटी में ही सावा सती का मंदिर बना हुआ है। जन्म का नाम पारस है। (पारस) सावा का जन्म माघ सुदी ५ संवत १६५७ वसंत पंचमी के दिन राजस्थान के सीकर जिला फतेहपुर शेखावाटी में श्री पारखचंदजी गरगोत्री के गृहस्थांगन में श्रीमती उमादेवी की कोख से ज्येष्ठ पुत्री के रूप में हुआ।

(पारस) सावा का विवाह मंगसिर बदी अष्ठमी मंगलवार संवत १६७० अर्थात १२ वर्ष ११ महीने १७ दिन की आयु में रतनगढ़ के अग्रवाल धानुका परिवार में श्री भोलारामजी धानुका के पुत्र परमेश्वरजी के साथ में होना निश्चित हुआ। विवाह की कुछ घड़ियाँ शेष थी दूल्हा बारात के साथ तोरण के लिए द्वार पे आने ही वाला था। शहनाईयां और बाजे बज रहे थे। (पारस) सावा बाई बनी संवरी वरमाला लिए अपने पति परमेश्वर के दर्शन के लिए तैयार खड़ी थी की किसीने आकर बुरी खबर सुनाई की दूल्हा और बारात तोरण रश्म के लिए सावा के घर आ रहे थे की दूल्हे सहित पूरी बारात को अचानक डाकुओंने चारों तरफ से घेर लिया। तथा बरातियों के गहने नगदी सब छीन लिए। जब दूल्हे की और बढे तो दूल्हे ने भी अपना धर्म निभाते हुए डाकुओं का सामना किया। अचानक दूल्हे परमेश्वर के सीने पर मुख्या डाकू का तीर लगा और दूल्हा वही पर वीर गति को प्राप्त हो गया।

(पारस) सावा वहां का दृष्य सुनकर पति के पास आई, पति के शव को गोद में लेकर माथे को सहलाया। उसी समय पारसका चंडी रूप बन गया तथा सावा के आवाहन करने से वही पर सिंह प्रगट हो गया। सावा पति की तलवार लेकर सिंह पे चढ़ि डाकू दल को मारा, कुछ डाकू घबराकर भाग गये चारों और सन्नाटा छा गया। डाकू दल का मुखिया हाथ जोड़ कर (पारस) सावा के चरणों में गिर गया, सावाने विधि के विधान को समझकर उसको क्षमा कर दिया, और चिता तैयार करने का आदेश दिया, चिता तैयार हुई सावा दुल्हन बनी हुई अपने पति के शव को गोद में लेकर अग्निरथ पर बैठ गयी। अपने सतित्व के बलपर सुहाग को अक्षुण्य बनाये रखकर चिता को स्वयं प्रज्वलित कर लिया और परिवार के परिजन पुरजन के सभी लोगों के सामने मंगसिर बदी ८ अष्ठमी संवत १६७० यानि १२ वर्ष ११ महीने १७ दिन की आयु में सती हुई। उसकी चिर स्मृति हेतु बिरादरीवालों ने उनकी चिता के स्थान पर एक सुंदर मठ कर निर्माण करवा दिया। उसी समय से भारत वर्ष के सभी धानुका परिवार इन्हें सावा सती दादी के रूप में मानते है तथा पूजा धोक जात जड़ूला सवामणी छप्पन भोग करने बराबर फतेहपुर सावा सती दरबार में आते है और सावा शक्ति दादी उनकी सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण करती है।